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बुधवार, 25 सितंबर 2013

है चाहता बस मन तुम्हें

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर  आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती कृष्ण शलभ जी  की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा... 

शीतल पवन, गंधित भुवन
आनन्द का वातावरण
सब कुछ यहाँ बस तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें

शतदल खिले भौंरे जगे
मकरन्द फूलों से भरे
हर फूल पर तितली झुकी
बौछार चुम्बन की करे
सब ओर मादक अस्फुरण
सब कुछ यहाँ बस तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें

संझा हुई सपने जगे
बाती जगी दीपक जला
टूटे बदन घेरे मदन
है चक्र रतिरथ का चला
कितने गिनाऊँ उद्धरण
सब कुछ यहाँ बस तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें

नीलाभ जल की झील में
राका नहाती निर्वसन
सब देख कर मदहोश हैं
उन्मत्त चाँदी का बदन
रसरंग का है निर्झरण
सब कुछ यहाँ बस तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें.
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कृष्ण शलभ बाल रचनाकार के अतिरिक्त गीत और गज़लों के क्षेत्र में एक जाना माना नाम हैं। वे भारत की सभी पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं।जन्म- १८ जुलाई १९४५ को सहारनपुर में।

प्रकाशित कृतियाँ-
चार बालगीत संग्रह- ओ मेरी मछली, टिली लिली झर्र, चीं चीं चिड़िया और सूरज की चिट्ठी। सहित एक वृहद संकलन ५५१ बाल कविताएँ जिसमें हिंदी बाल गीतों पर एक शोध भी प्रस्तुत किया गया है।

सम्मान पुरस्कार-
हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के पुरस्कार, भारतीय बाल कल्याण संस्थान कानपुर, नागरी साहित्य संस्थान बलिया, सृजन संस्थान रुड़की तथा अन्य अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत सम्मानित

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